चारुमती किशनगढ़ के राजा रूपसिंह की पुत्री थी। रूपसिंह की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र मानसिंह उसका उत्तराधिकारी हुआ। चारुमती बहुत ही सुन्दर थी और उसका यह रूप-सौन्दर्य तथा लावण्य ही उसके लिए परेशानी का एक कारण बन गया। चारुमती की सुंदरता की प्रशंसा सुनकर औरंगज़ेब उससे शादी करने का इच्छुक हुआ। उसने अपने मनसबदार मानसिंह के सम्मुख, जो किशनगढ़ का राजा और चारुमती का भाई था, शादी का प्रस्ताव रखा। मानसिंह को विवश होकर उसका प्रस्ताव स्वीकार करना पड़ा।
चारुमती जो अपने पिता की भांति परम वैष्णव थी, गीता आदि धार्मिक ग्रन्थों का नित्य पूजन-पठन करती थी, वह औरंगज़ेब जैसे कृट अत्याचारी, विधर्मी से विवाह नहीं करना चाहती थी। चारुमती ने अपनी माता और भाई मानसिंह को अपना मंतव्य स्पष्ट रूप से बता दिया था और यदि जबरन उससे शादी करने की कोशिश की तो वह प्राण त्याग देगी। इधर अपनी बहिन का दृढ़ निश्चय और उधर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब का खौफ! राजा मानसिंह दुविधा में फंस गया। उसे कुछ उपाय नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाय।
चारुमती दृढ़ निश्चय वाली, बड़ी वीर और साहसी राजपूत नारी थी। उसने संकट की स्थिति में भी धैर्य नहीं खोया और उसे अपने प्राण की रक्षा का एक उपाय सूझा। अपनी और अपने धर्म की रक्षार्थ उसने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखा जिसमें यह निवेदन किया गया कि – “मेरे कुटुम्बी व परिवार जनों के होते हुए भी मैं आज एक अनाथिनी हूँ। राज्य-सुख के अभिलाषी मेरे परिवार के लोग विधर्मी औरंगज़ेब से, मेरी इच्छा के विपरीत, जबरन विवाह करना चाहते हैं। मैंने निश्चय किया है कि दिल्ली अधीश्वरी बनने की बजाय मैं आपके चरणों की दासी बनना चाहती हूँ, इसी में मेरा धर्म, कुल-परम्परा और स्वाभिमान सुरक्षित है। आप शरणागतवत्सल और समर्थ शासक हैं, इसलिए यह अनुनय कर रही हूं कि मुग़लों के हाथ पड़ने से मुझे बचाइये और एक स्वाभिमानी बाला के स्वाभिमान की रक्षा कीजिए। चारुमती तो आपकी हो चुकी है, अब आप अपनी चारुमती की लाज बचाइये।” चारुमती का पत्र पाते ही महाराणा राजसिंह उसकी सहायता को उपस्थित होते हैं। इस प्रकार महाराणा राजसिंह की रानी चारुमती अपने स्वाभिमान की रक्षा करने में सफल हो जाती है।
डा.विक्रमसिंह राठौड़,गुन्दोज
राजस्थानी शोध संस्थान, चोपासनी, जोधपुर
Note: प्रकाशित चित्र प्रतीकात्मक है
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