लिखमां दे जैसलमेर के कलिकर्ण भाटी की पुत्री और हरभू सांखला की दोहिती थी। लिखमां का जन्म उसके ननिहाल बैंहगटी में हुआ। मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण लिखमां का परित्याग कर दिया गया। संयोगवश हरभू सांखला, जो फलौदी गया हुआ था, वापस अपने गांव लौट रहा था। उसने सुनसान जंगल में बच्चे के रोने की आवाज सुनी। पास जाकर देखा तो एक कन्या रो रही थी, वह उसे घर उठा लाया। घर वालों ने उस परित्यक्त कन्या को पहचान लिया और हरभू से कहा इसे तो जंगल में छोड़ दिया था, वापस उठाकर क्यों लाये, यह बुरे नक्षत्र में पैदा हुई है। हरभू ने कहा “कोई चिन्ता की बात नहीं । यह मूल नक्षत्र में भले ही पैदा हुई हो यह आगे चलकर ससुराल और पीहर दोनों कुलों का मान बढ़ाने वाली बड़ी भाग्यशाली होगी।” हरभू सांखला स्वयं बहुत बड़ा शकुनी (भविष्य वक्ता) था, उसकी गणना राजस्थान के प्रमुख लोक-देवताओं में होती है। हरभू की बात परिवार वालों ने मान ली। उसी रात हरभू सांखला के स्वयं के पुत्री उत्पन्न हुई। दोनों मासी भाणजी समान लाड़प्यार में पलकर बड़ी हुई।
विवाह योग्य होने पर हरभू ने लिखमां दे का सम्बन्ध पोकरण के शासक खींवसी से करने हेतु ब्राह्मण के साथ नारेल भेजा। खींवसी ने दुल्हन के दांत बड़े बताकर इस रिस्ते को स्वीकार नहीं किया पर कहा कि यदि हरभूजी अपनी पुत्री की शादी करें तो उसके साथ विवाह किया जा सकता है। ब्राह्मण ने आकर वापिस हरभू सांखला को यह बात बतायी। हरभू यह सुनकर बड़ा दुखी हुआ, सोचा क्या किया जाय, जिसके पुत्री पैदा होती है उसका जन्म बेकार हो जाता है। हरभू ने खींवसी की इच्छानुसार अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया और इस प्रकार लिखमां दे कुवारी रह गयी। जगह जगह उसके सम्बन्ध (सगाई) का प्रयास किया गया पर उससे कोई विवाह करने को राजी ही नहीं था। खींवसी पोकरण द्वारा उसकी निन्दा करने के कारण सभी जगह से उसके नारेल वापिस लौटकर आते।
संयोग की बात राव सातल, जो जोधपुर का शासक था, उसका छोटा भाई सूजा शिकार खेलता हुआ बेहगटी आया, उस समय हरभू सांखला ने अपनी दोहिती लिखमां का विवाह सूजा से किया। राव सातल के कोई पुत्र न होने के कारण उसकी मृत्यु के पश्चात् सूजा जोधपुर का शासक बना और लिखमां दे पटरानी, लिखमां दे के बाघा और नरा नामक दो वीर पुत्र हुये। बाघा बगड़ी पर और नरा फलौदी में रहता था। नरा के पास ही उसकी मां लिखमां दे रहती थी।
बरसात के दिन थे। एक दिन शाम को नरा अपनी मां के पास बैठकर भोजन कर रहा था, उस समय उसके नौकर ने आकाश में उमड़े बादलों की घटा की तरफ देखते हुए कहा – “आज तो पोकरण पर बिजली चमक रही है।” यह सुनकर लिखमां ने निःस्वास छोड़ा तो नरा ने कहा “मां! तेरे नरा और बाघा जैसे पुत्र और जोधपुर के राव सूजा जैसे पति है फिर क्या दुख है? यह निःस्वास कैसे छोड़ा? मुझे अपने मन की पीड़ा शीघ्र बता।” पहले तो लिखमां दे ने टालने की कोशिश की पर नरा के आग्रह करने पर उसे बताते हुए कहा – बेटे! तुम्हें पता नहीं पोकरण वालों ने मेरी निन्दा की थी। शादी के बाद ही किसी दुल्हन को अमान्य किया जाता है परन्तु खींवसी ने जब मैं कुंवारी थी उस समय अमान्य कर मेरी बेइज्जती की, मुझे बदसूरत व बड़ी दांतों वाली बताकर मेरी हंसी उड़ाई। अकारण ही उसकी वजह से मुझे बहुत दिनों तक दुख व क्लेश उठाना पड़ा। मेरी अपकीर्ति हुई। इसीलिए पोकरण का नाम आते ही मेरे हृदय में क्रोधाग्नि भड़क उठती है। अपना अपमान करने वाले को मैं दण्डित नहीं कर सकी, इस बात का मुझे बड़ा दुःख है।
अपनी मां की यह दर्दीली दास्तान सुनकर नरा ने कहा – “मां! तुम चिन्ता मत करो, इतने दिन पहले तुमने यह बात क्यों नहीं बतायी, तुम्हारे श्रपमानकर्त्ता को कभी का दण्ड दे चुके होते।” नरा ने अपनी मां का अपमान करने वाले पोकरण के खींवसी पर आक्रमण कर उससे पोकरण का राज्य छीना। खींवसी को परिवार सहित पोकरण छोड़ने पर मजबूर किया। नारी का अपमान करने वाले खींवसी को राज्य-च्युत कर स्वाभिमानी और साहसी महिला लिखमां दे ने प्रतिशोध (बदला) लिया।
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