रानी रुदाबाई (कर्णावती) – Rani Rudabai (Karnavati) – Great Rajput Women

Rani Rudabai

गुजरात का एक राज्य कर्णावती जिसे आज आप अहमदाबाद के नाम से जानते है जिसके राजा राणा वीर सिंह वाघेला (सोलंकी) थे। १५वीं शताब्दी में इस राज्य ने तुर्क हमलावर आक्रांताओं के कई हमलों का सामना किया किन्तु सफलता किसी भी आक्रांता को ना मिल पाई। यहाँ तक कि सन् १४९७ में तुर्क सुल्तान बेघारा ने पाटन राज्य पर ४००००० से ज्यादा सैनिकों की फौज हमला किया किन्तु राणा वीर सिंह वाघेला के शौर्य व पराक्रम के आगे तुर्क सुंल्तान की वह फौज २ घंटे से अधिक टिक ना सकी और सुल्तान बेघारा को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। कर्णावती और पाटन दोनों ही राज्य छोटे होने की वजह से राणा वीर सिंह वाघेला की सेना की संख्या छब्बीस सौ से अठ्ठाइस सौ से अधिक नहीं थी। क्योंकि उन्हें अधिक सेना की आवश्यकता नहीं होती थी। फिर भी राणा जी के युद्ध कौशल ने जिहादी आतंकियों की लाखों की फौज को खदेड़ दिया।

वाघेला राजपूत राजा की एक बहुत सुन्दर रानी थी जिनका नाम था रुदाबाई (उर्फ़ रूपबा)। इनकी सुंदरता के चर्चे चारों ओर फैले हुए थे। जितनी ही रूप वान थी उतनी ही दृढ़ संकल्प और साहसी महिला।

तुर्क सुल्तान बेघारा भी अन्य तुर्क तथा मुग़ल आक्रांताओं के सामान ही गलत नियत से हमला करने आया था। उस तुर्क की गलत नजर रानी रुदाबाई पर थी जो की अत्यंत ही खूबसूरत थी। वह रानी को युद्ध में जीतकर अपने हरम में रखने का ख्वाब देख रहा था। इसकी इच्छा के चलते उस तुर्क आक्रांता ने फिर से कुछ समय पश्चात् हमला बोला।

इस बार तुर्क सुल्तान ने तुर्क व मुग़लों की आदतन छल – कपट वाली निती को अपनाया और राणा जी के साथ रहने वाले निकटवर्ती मित्र धन्नू  साहूकार को अपनी और मिला लिया। उस धोकेबाज साहूकार ने राज्य की सभी गुप्त सूचनाएं सुल्तान को दे दी। जिसकी वजह से सुल्तान ने कपट से राणा वीर सिंह को युद्ध में हरा दिया। इस युद्ध में जब राणा वीर सिंह युद्ध में सुल्तान की ओर बढ़ रहे थे तभी उनका विश्वासपात्र मित्र धन्नू साहूकार ने धोके से पीछे से वार किया जिसके कारन राणा जी युद्ध क्षेत्र में ही वीरगति को प्राप्त हुए। ।

युद्ध जीतकर सुल्तान अपनी वासना व हवस को पूरा करने के लिए रानी रुदाबाई के पास राणा जी के महल में १० हजार सैनिकों के लश्कर को लेकर पंहुचा और अपने दूत के हाथों रानी रुदाबाई के पास निकाह का प्रस्ताव भिजवाया।

रानी रुदाबाई ने पहले से ही २५०० धनुर्धारी वीरांगनाओं के साथ राणा जी के महल के ऊपर पूरी छावनी बनाई हुई थी, वे सभी वीरांगनाएं रानी रुदाबाई के एक इशारे पर सुल्तान के लश्कर पर हमला करने को तैयार थी। लेकिन रानी रुदाबाई न केवल सौंदर्य की धनी ही नहीं थी बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनी थी पहले रानी ने सुल्तान को महल के द्वार के अंदर आये का न्यौता दिया।

सुल्तान बेघारा हवस की आग में अँधा होकर दुर्ग के द्वार से अंदर आया और रानी रुदाबाई ने बिना समय गवाएं सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर घोंप दिया। दूसरी और वीरांगनाओं ने शाह के लश्कर पर छावनी से तीरों की वर्षा करदी जिसमे एक भी सैनिक वापस बचकर नहीं जा पाया।

रानी रुदाबाई ने सुल्तान बेघारा का सीना फाड़कर उसका कलेजा बहार निकाल लिया और कर्णावती शहर के बीच उसे लटकवा दिया। तथा उसका सर धड़ से काटकर पाटन राज्य के बीच टांग दिया। इसके साथ रानी रुदाबाई ने यह चेतावनी भी जारी की कि जो भी दुष्ट आक्रांता भारतवर्ष या भारतीय नारियों पर गलत दृष्टि लेकर आएगा उसका इसी प्रकार परिणाम होगा।

रानी रुदाबाई ने इस युद्ध के पश्चात् राजकाज को सुयोग्य हांथों में देकर स्वयं को जल समाधी कर अपना अंत कर लिया जिससे भविष्य में फिर कोई आक्रांता उनकी और गलत नजर लेकर ना आये व वह पवित्र ही रहे।

गुजरात के वासियों के साथ ही समस्त देशवासी रानी रुदाबाई को नमन करते है।