History of Chauhan Rajput – चौहान वंश का इतिहास, ठिकाने, शाखायें व कुलदेवी

History of Chauhan Rajput

चौहान वंश का परिचय 

एक ऐसा प्रमुख राजपूत राजवंश जिसने चार शताब्दियों तक भारत के कुछ हिस्सों पर शासन किया वह था चौहान राजवंश। एक ऐसा शक्तिशाली राजवंश जिसने भारतीय संस्कृति तथा भारतीय इतिहास पर अमिट प्रभाव छोड़ा। चौहान राजवंश का राजपूतों के 36 राजवंशों में भारतीय इतिहास में विशेष महत्त्व रहा है। चौहान राजवंश ने राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों सहित दिल्ली के सम्राट के रूप में भी 7वीं शताब्दी से लेकर भारत की स्वतंत्रता तक शासन किया।

चम्मन राजपूतों के राजस्थान में कुछ हिस्सों पर अधिकार व शासन स्थापित करने के साथ ही 8वीं शताब्दी में चौहान वंश की उत्पत्ति हुई। चम्मन राजपूतों को अपनी बहादुरी तथा रण कौशल के लिए जाना जाता है। चौहान वंश ने अपने शासन काल में अपने कौशल से अपने क्षेत्र व प्रभाव का विस्तार कर अपना अधिकार स्थापित किया, जो कि वर्तमान में हरियाणा, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में आते है।

चौहान वंश के प्रसिद्ध शासक हुए पृथ्वीराज चौहान जिनका 12वीं शताब्दी तक अजमेर के साथ ही दिल्ली पर भी शासन रहा। चौहान वंश की विभिन्न शाखाएं थी जिनमे चालुक्य चौहान, शाकम्भरी चौहान व अजमेर चौहान भी है।

पृथ्वीराज चौहान को भारतीय इतिहास के अत्यंत महान योद्धाओं में से एक माना जाता है। उनकी वीरता, संयम, आदर और तुर्की शासक मुहम्मद गोरी के खिलाफ उनकी पौराणिक लड़ाइयों को याद किया जाता है, जिसमे उसने उत्तरी भारत पर अपने शासन की चुनौती दी थी। पृथ्वीराज चौहान की मुहम्मद गोरी के खिलाफ लड़ाई अत्यंत संघर्षपूर्ण थी, जिससे दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ।

अपने शासन काल में विभिन्न धर्मस्थलों, मंदिरों के साथ ही कही गढ़ों-किलों के निर्माण करने तथा उनमे उन्नत कलात्मकता का उपयोग करने की वजह से यह जाहिर है कि चौहान वंश वास्तुकला, संस्कृति व धर्म के महान संरक्षक थे तथा उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके शासन काल में कई महत्वपूर्ण निर्माण हुए जिनमे प्रमुख रूप से अजमेर का तारागढ़ किला तथा उत्तर प्रदेश में कालिंजर किला है।

माना जाता है कि कई बार चौहानो से हार का सामना करने के बाद छल द्वारा पृथ्वीराज चौहान को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने ११९२ इस्वी में तराइन की दूसरे युद्ध में पराजित किया तथा बंदी बनाकर अपने साथ ले गए। वहां उनके साथ क्रूरता पूर्वक व्यवहार किया गया। उन्हें अँधा करने के बावजूद उन्होंने चंद वरदाई की कविता की सहायता से मोहम्मद गौरी को मारकर दोनों ने एक दूसरे को ख़त्म कर लिया। 13वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रांताओं के साथ युद्धों में कई बार हार के बाद चौहान वंश का पतन हो गया। इसी की साथ उत्तर भारत के कई राजपूत वंश अपने प्रभाव व शक्ति को खोते रहे। इतना होते हुए भी आज चौहान वंश अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए हुए राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में महत्वपूर्ण उपस्थिति के साथ भारत के विभिन्न राज्यों में फैला हुआ है तथा समाज की सभी क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहा है।

उत्पत्ति :-

चौहान वंश की उत्पत्ति के सम्बंध में विभिन्न उल्लेख प्राप्त होते हैं। भविष्य पुराण में यह वर्णित है कि सम्राट अशोक के पुत्रों के काल में राजस्थान के आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज (कन्नौज) के संतों व ब्राह्मणों ने एक ब्रह्महोम (यज्ञ) किया, जिससे चार क्षत्रिय उत्पन्न हुए, जिसमें एक चाहूमन -चौहान भी था। चन्द वरदाई भी चौहानों की उत्पत्ति को आबू के यज्ञ से संबंधित मानते हैं, जिसका वर्णन पृथ्वीराजरासो में मिलता है। विदेशी दार्शनिक कुक के अनुसार इस यज्ञ में विदेशियों को धर्म परिवर्तन कर हिन्दू धर्म ग्रहण करवाया गया, इसलिए वे इन्हे विदेशी मानते थे। प्राचीनकाल में यज्ञ कार्य को निर्विघ्न सम्पूर्ण करने के लिए क्षत्रियों को नियत किया जाता था, अतः आबू पर्वत पर चार क्षत्रियों को यज्ञ के रक्षा के लिए तैनात किया गया, ताकि यज्ञ निर्विघ्न सम्पन हो या वैदिक धर्म के अनुसार क्षत्रियों तथा बौद्ध धर्म के मानने वाले चार क्षत्रियों को वैदिकधर्म का संकल्प कराया गया हो। इन क्षत्रियों के वंशजों को आगे जाकर उन्ही क्षत्रियों के नाम से चौहान, परमार, प्रतिहार, चालुक्य कहा गया हैं। अतः कुक के समान अन्य दार्शनिकों की यह राय की विदेशियों को शुद्ध कर धर्म परिवर्तन कर क्षत्रिय बनाया गया, यह विचार स्वीकार नहीं किया जा सकता।

सूर्यवंश के उपवंश चौहानवंश में राजा विजयसिंह हुए। डॉ. परमेश्वर सोलंकी का हरपालीया कीर्तिस्तम्भ का मूल शिलालेख संबंधित लेख में (मरू भर्ती पिलानी) अचलेश्वर शिलालेख (वि. 1377) चौहान आसराज के प्रसंग में लिखा गया है।

राघर्यथा वंश करोहिवंशे सूर्यस्यशूरोभूतिमंडले——ग्रे |
तथा बभूवत्र पराक्रमेणा स्वानामसिद्ध: प्रभुरामसराजः || 16 ||

अर्थात पृथ्वीतल पर जिस प्रकार पहले सूर्यवंश में पराक्रमी (राजा) रघु हुआ, उसी प्रकार यहाँ पर (इस वंश) में अपने पराक्रम से प्रसिद्ध कीर्तिवाला आसराज (नामक) राजा हुआ |

इन शिलालेखों व साहित्य से मालूम होता है कि चौहान सूर्यवंशी रघु के कुल में थे | हमीर महाकाव्य, हमीर महाकाव्य सर्ग | अजमेर के शिलालेख आदि भी चौहानों को सूर्यवंशी ही सिद्ध करते है | (अ) राजपूताने चौहानों का इतिहास प्रथम भाग- ओझा पृ. 64  (ब) हिन्दू भारत का उत्कर्ष सी. वी. वैद्य पृ. 147)  इन आधारों पर ख्याति प्राप्त विद्वान पं. गौरीशंकर ओझा, सी. वी. वैद्य आदि ने चौहानों को सूर्यवंशी क्षत्रिय सिद्ध किया है | (हिन्दू भारत का उत्कर्ष पृ. 140) अतः कहा जा सकता है कि चौहान सूर्यवंशी थे |

चौहानो का प्राचीन इतिहास 

कुछ दार्शनिकों के अनुसार या मन जाता है कि धरती पर पापों के अधिक बढ़जाने से तथा राक्षसों के बलवान हो जाने से देवता भयभीत हो गए तथा भगवान की प्रार्थना करने हेतु आबू पर्वत शिखर पर एकत्र हुए। यहाँ पर भृगु-ऋषि, ब्रह्मा तथा समस्त ऋषियों ने मिलकर वैदिक विधि-विधान से अग्निकुण्ड में आहुति दी। जिससे चार क्षत्रिय राजा प्रकट हुये। चौथे राजा की चारों भुजाओं में शस्त्र थे। यह माना जाता है कि परशुराम द्वारा पृथ्वी को 21 बार क्षत्रीय विहीन करने के बाद ऋषि-मुनियों की विनती से भगवान श्री विष्णु ने ही स्व-अंश कलाओं से देवताओं के कार्य करने, राक्षसों को नष्ट करने, धर्म का विस्तार करने तथा पाप का विनाश करने के लिए अग्नि के समान तेज को धारण कर चतुर्भुज-आयुधों सहित चौहान रूप में प्रकट हुए।

उसी समय, सूभीनर नामक एक सोमवंशी (चन्द्रवंशी) राजा थे। उनकी एक पुत्री थी, जिनका नाम संगूया (संज्ञा) था। संगूया (संज्ञा) का विवाह उन चतुर्भुज (सूर्यवंशी) के साथ हुआ। चतुर्भुज और संगूया (संज्ञा) के चाह ऋषि का जन्म हुआ, जिसका नाम चाह ऋषि था। चाह ऋषि ने वत्स ऋषि से दीक्षा ली, इसलिए चौहानों का गोत्र वत्स हुआ।

पृथ्वीराजरासो के अनुसार: एक दिन, अगस्त्य, गौतम, वशिष्ठ, विश्वामित्र और अन्य महान ऋषियों ने अरुडा (माउंट आबू) पर एक बड़ा यज्ञ समारोह शुरू किया। दानवों ने मांस, रक्त, हड्डियों और मूत्र को प्रदूषित करके हवन समारोह को बाधित किया। इन राक्षसों से छुटकारा पाने के लिए, वशिष्ठ ने एक होम अनुष्ठान किया। इसके कारण प्रतिहार (“द्वारपाल”) नामक एक नायक की उपस्थिति हुई, जिसे वशिष्ठ ने महल की ओर जाने वाले मार्ग पर रखा। इसके बाद, चालुक्य नामक एक अन्य नायक ब्रह्मा की खोखली हथेली से प्रकट हुआ। अंत में, एक तीसरा नायक दिखाई दिया, जिसने पावरा, परमार (या परा-मार, “दुश्मन का कातिल”) नाम के ऋषि को बुलाया। हालांकि, ये तीनों नायक राक्षसों को रोकने में सक्षम नहीं थे। वशिष्ठ ने फिर एक नए नायक का आव्हान करने के लिए एक नया अग्नि कुंड बनाया, और अग्नि को आहुति अर्पण किया। इस अग्नि से एक और क्षत्रिय प्रकट हुआ। इस चौथे सशस्त्र नायक के पास एक तलवार, एक ढाल, एक धनुष और एक तीर था। वशिष्ठ ने उनका नाम चवणा-चौहान रखा, वैदिक मंत्रोचार के साथ उनका राज्याभिषेक किया गया और फिर उन्हें राक्षसों से लड़ने का आदेश दिया। ऋषि ने भी देवी आशापुरा से उस क्षत्रिय की मदद करने के लिए आग्रह किया। चौहान ने राक्षस यन्त्रकेतु का वध किया, जबकि देवी ने राक्षस धमरकेतु का वध किया। यह देखते ही बाकी राक्षस भाग गए। चौहान की वीरता से प्रसन्न होकर, देवी उनकी कुलदेवी बनने के लिए सहमत हुईं। पृथ्वीराज चौहान, ‘पृथ्वीराज रासो’ के मुख्य नायक, इस वंश में पैदा हुए थे।

इस प्रकार चौहानों की पहचान यज्ञ की अग्नि से प्रकट होने से अग्निवंशी, सूर्यवंशी सम्राट अशोक के पुत्रों के समय हुए यज्ञ-हवन से प्रकट होने से सूर्यवंशी और एक सोमवंशी (चन्द्रवंशी) राजा की पुत्री संगूया (संज्ञा) से इन्हे चंद्रवंशी माना गया।

शाखा – कात्यायनी
पुर – त्रिपुरा
सूत्र – गोभिल
वर्ण – क्षत्रीय
धर्म – सात्विक
कुलदेवी – माता आशापुरा
पर्वत – आबू
प्रिय – शिव
पत्र – विल्व

इस चौहान के वंशज अपने ख्याति प्राप्त पूर्वज चौहान के नाम पर चौहान ही कहलाये |    

चौहानों के राज्य :-

1. अजमेर राज्य :-

पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज हुए | उन्होंने उज्जैन पर आक्रमण कर मालवा के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया | अपनी सुरक्षा के लिए उन्होनें 1113 ई.वि. 1170 के लगभग अजमेरु-अजमेर के स्थापना की

सांभरअजमेर राजवंश :-

  1. वासुदेव
  2. सामंत
  3. नरदेव
  4. जयराज 
  5. विग्रहराज 
  6. चन्द्रराज (प्रथम)
  7. गोपेन्द्रराज (प्रथम)
  8. दुर्लभराज | 
  9. गोपेन्द्रराज (गुहक)
  10. चन्द्रराज (चन्दनराज) | | 
  11. गुहक | | 
  12. चन्द्रराज | | |  
  13. वाक्पतिराज (प्रथम)
  14. सिंहराज 
  15. सिंहराज (950)
  16. विग्रहराज द्वितीय (973)
  17. दुर्लभराज | | (973-997)
  18. गोविन्दराज | | | 
  19. वाक्पतिराज | | 
  20. वीर्यराज 
  21. चामुंडराज
  22. सिंहट 
  23. दुर्लभराज | | | (1075-1080)
  24. विग्रहराज | | | (1080-1105)
  25. पृथ्वीराज | (1105-1113)
  26. अजयराज (1113-1133)
  27. अर्णोराज (1133-1151)
  28. विग्रहदेव (विसलदेव)(1152-1163)
  29. अपर गांगये (1163-1166)
  30. पृथ्वीराज | | (1167-1169)
  31. सोमेश्वर (1170-1177)
  32. पृथ्वीराज | | | (1179-1192)
  33. गोविन्दराज (1192-)
  34. हरिराज (1192-1194)

2. रणथम्भौर राज्य :-

पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज ने रणथम्भौर दुर्ग को हस्तगत किया |

रणथंभौर राजवंश :-

  1. गोविन्दराज (1194 ई.)
  2. वाग्भट्ट (1226 ई.)
  3. वाल्हड़ (1215 ई.)
  4. जैत्रसिंह 
  5. प्रह्लादन 
  6. वीरनारायण 
  7. हम्मीर (1282-1303 ई.)

3. नाडौल राज्य :-

साम्भर के चौहान वाक्पतिराज (प्रथम) के बड़े पुत्र सिंहराज पिता के उत्तराधिकारी हुए और छोटे पुत्र लाखन (लक्ष्मण) ने नाडौल (जिला पाली) पर अधिकार कर अलग राज्य की स्थापना की | जिसके समय के दो शिलालेख 1014 वि. व 1036 वि. के नाडौल में मिले है | (चौहान कुल कल्ष द्रुम पृ. ४८ (मंगलसिंह देवड़ा के सौजन्य से) लाखन के यों तो 24 पुत्र माने गए है | कहा जाता है उनमे 24 शाखायें उत्पन्न हुई पर इनका कोई भी वृत्तांत उपलब्ध नहीं है | लाखन के पुत्रों में शिलालेखों तथा ख्यातों में चार नाम मिलते हैं :-शोभित, विग्रहपाल, अश्वराज (आसराज, अधिराज, आसल) तथा जैता |

नाडौल राजवंश :-

  1. लाखन (लक्ष्मण) (943-982)
  2. बलिराज 
  3. महेन्द्र 
  4. अहिल
  5. अणिहल 
  6. बालाप्रसाद 
  7. जेन्द्रराज (1067 ई.)
  8. पृथ्वीपाल 
  9. जोजलदेव (1090 ई.)
  10. आसराज (1110-1115 ई.)
  11. रत्नपाल (1119 ई.)
  12. कटुदेव (कटुकराज) (1115 ई.)
  13. रायपाल (1127-1145 ई.)
  14. आल्हण (1152-1163 ई.)
  15. कल्हण (1163-1193 ई.)
  16. जयतसिंह | | (1193-1197 ई.)
  17. सांमतसिंह (1197-1202 ई.)

4. जालौर राज्य :-

जालौर भी चौहानों का मुख्य राज्य था | वि. सं. 1238 ई. 1281 नाडौल के अश्वराज के पौत्र और आल्हण के पुत्र कीर्तिपाल परमारों से जालौर छीन कर स्वयं राजा बन बैठे | जालौर का प्राचीन नाम जाबालीपुर व किले का नाम स्वर्णगिरि मिलता है | यहाँ से निकलने वाले चौहान ‘सोनगिरा’ नाम से विख्यात हुए |

जालौर राजवंश 

  1. कीर्तिपाल (कीतू) (1163-1182 ई.)
  2. समरसिंह (1182-1205)
  3. उदयसिंह (1205-1557)
  4. चाचिगदेव (1257-1282)
  5. सामंतसिंह (1282-1296)
  6. कान्हड़देव (1296-1314)

5. चन्दवाड़राज्य :-

उत्तर प्रदेश में आगरा के पास चन्दवाड़ हैं | वि. सं. 1251 ई. 1194  जयचन्द्र गहड़वाल मोहम्मद गोरी से इसी स्थान पर पराजित हुए थे | चन्दवाड़ से सम्बन्धित कवि श्रीधर का वि. 1230 का लिखा हुआ ग्रंथ ‘भागविसयत कहा’ है | परन्तु इसमें चन्दवाड़ पर शासन करने वाले किसी राज्य का नाम नहीं है | कवि लक्ष्मण ने वि. सं. 1313 में अण बयरयणपईव (अणव्रत-रत्न-प्रदीप) की रचना यहीं की थी | (चन्दवाड का चौहान राज्य डॉ. दशरथ शर्मा का अभिभाषण-बरदा जनवरी 1964 पृ. 84) लक्ष्मण ने चौहान राजा भारतपाल के लिए लिखा कि भरतपाल लक्ष्मण के समय के शासक आहवमल्ल चौहान से तीन पीढ़ी पूर्व था | (भरतपाल-जाहड़-बल्लास-आहवमल्ल) इससे जाना जा सकता है कि  प्रति पीढ़ी 20 शासन काल के हिसाब से 60 वर्ष पीछे ले जाने पर 1313-60=1253 वि. होता हैं | इस समय (1253 वि. ) में भरतपाल यहाँ शासन कर रहा था | संभव है इससे पूर्व भी यहाँ चौहानों का राज्य रहा होगा | 

6. भड़ौंच (गुजरात) राज्य :-

भड़ौंच (गुजरात) क्षेत्र के हांसोट गांव से चौहान शासक भर्तवढ़ढ (भर्तवद्ध) द्वितीय का दानपात्र मिला है जो वि. सं. 813 का हैं | इस दानपात्र से पाया जाता है कि भर्तवढ़ढ द्वितीय नागावलोक का सामंत था | इससे जाना जा सकता है कि 813 वि. में चौहानों का भड़ौच के आस पास राज्य था |

7. धोलपुर (धवलपुरी) राज्य :-

राजस्थान में विक्रम की 9 वीं शताब्दी में धोलपुर के पास चौहान शासन करते थे |

8. प्रतापगढ़ (चित्तौड़) राज्य :-

वर्तमान प्रतापगढ़ क्षेत्र पर भी वि. की 11 वीं शताब्दी की प्रथम चरण में चौहानों का राज्य था | यह चौहान प्रतिहार भोजदेव के सामंत थे |

9. डबोक (उदयपुर) राज्य :-

वर्तमान डबोक (उदयपुर-राज.) क्षेत्र में 1300 वि. के लगभग का चौहान का एक शिलालेख  | जिससे चौहानों के कई नामों की जानकारी मिलती है | सबसे पहले महेन्द्रपाल, सुर्वगपाल, मंथनसिंह, क्षात्रवर्म, दुर्लभराज, भूत्तालरक्षी, समरसिंह, देवार्णोराज व सुलक्षणपाल और छाहड़ का समय 1300 वि. है अतः महेन्द्रपाल का समय 9 पुश्त पहले 1200 वि. के लगभग पड़ता है अतः यह वंश नाडौल के लक्ष्मण के पुत्र विग्रहपाल के पुत्र महेन्द्रपाल या लक्ष्मण के पुत्र आसराज (अधिरज) के पुत्र महेंद्र का वंश होना चाहिए |

10. बूंदी राज्य :-

हाड़ा चौहानों की प्रसिद्ध खांप रही है  लक्ष्मण नाडौल के पुत्र (अश्वपाल, अधिराज) के पुत्र माणकराव हुए | माणक के बाद क्रमशः सम्भारन (भणुवर्धन) जैतराव, अनंगराव, कुंतसी, विजैयपाल व हरराज (हाड़ा) के वंशज हाड़ा कहलाते हैं |

बूंदी राजवंश :-

  1. देवाजी हाड़ा (1342-1343)
  2. समरसिंह (1343-1346)
  3. नरपाल (1346-1370)
  4. हम्मीर (1370-1403)
  5. वीरसिंह (1403-1413)
  6. बैरीशाल (1413-1459)
  7. भाणदेव (1459-1503)
  8. नारायणदास (1503-1527)
  9. सूरजमल (1527-1531)
  10. सूरतान (1531-1554)
  11. सूर्जन (1554-1585)
  12. भोज (1585-1608)
  13. रतनसिंह (1608-1631)
  14. छत्रशाल (1631-1658)
  15. भावसिंह (1658-1681)
  16. अनिरूद्धसिंह (1681-1695)
  17. बुद्धसिंह (1695-1729)
  18. दलेलसिंह (1729-1748)
  19. उम्मेदसिंह (1748-1771)
  20. अजीतसिंह (1771-1773)
  21. विष्णुसिंह (1773-1821)
  22. रामसिंह (1821-1889)
  23. रघुवीरसिंह (1889-1927)
  24. ईश्वरसिंह (1927-1945)
  25. बहादुरसिंह (1945)

11. कोटा राज्य :-

बूंदी राव समरसिंह के पुत्र जैत्रसिंह ने भीलों से कोटा का क्षेत्र छीना | कर्नल टॉड ने लिखा है कि कोटिया नामक भीलों की एक जाति के नाम से कोटा  नामकरण हुआ | (टॉड राजस्थान अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ. 737) जैत्रसिंह के समय से कोटा का राज्य बूंदी राव रतनसुनह के पुत्र माधोसिंह ने शौर्यपूर्ण कार्य किये | अतः शाहजहां ने माधोसिंह को वि. सं. 1688 में कोटा का स्वतंत्र राज्य दिया | तब से कोटा राज्य बूंदी राज्य से अलग हुआ | शाहजहां ने इसी समय माधोसिंह को ढाई हजार सात व डेढ़ हजार सवार का मनसब भी प्रदान किया |

कोटा राजवंश :-

  1. माधोसिंह (1631-1649)
  2. मुकंदसिंह (1649-1658)
  3. जगतसिंह (1658-1683)
  4. प्रेमसिंह (कोयला)(1683-1684)
  5. किशोरसिंह | (1684-1696)
  6. रामसिंह (1696-1707)
  7. भीमसिंह (1707-1720)
  8. अर्जुनसिंह (1727-1756)
  9. दुर्जनशाल (1727-1756)
  10. अजीतसिंह (1756-1758)
  11. शत्रुशाल (1758-1764)
  12. गुमानसिंह (1764-1771)
  13. उम्मेदसिंह | 1771-1819)
  14. किशोरसिंह | | (1819-1827)
  15. रामसिंह | | (1827-1865)
  16. शत्रुशाल | | (1865-1888)
  17. उम्मेदसिंह | | (1888-1940)
  18. भीमसिंह (1940- )   

12. गागरोण राज्य :-

गागरोण (कोटा) खींची चौहानों का राज्य था | खींचियों का स्थान जायल जिला (नागौर) रहा है | लक्ष्मण नाडौल के पुत्र आसराज (अश्वपाल, अधिराज) के पुत्र माणिकराव हुए | माणिकराव के वंशज खींची चौहान कहलाये |   

चौहान शब्द के लिए प्राचीन अभिलेखों में चाहमान शब्द मिलता है | पृथ्वीराज विजय में चौहान शब्द के लिए ‘चापमान’ या ‘चापहरि’ शब्द का प्रयोग हुआ है | इसका अर्थ धनुर्धर लिया जाता है | चारण अनुश्रुतियों के अनुसार अग्निकुण्ड से उत्पन्न चार कुलों में से एक है और इस कारण अग्निवंशी हैं | ‘हम्मीर महाकाव्य’ और ‘पृथ्वीराज विजय’ के अनुसार चौहान, चाहमान नामक पुरुष के वंशज हैं और सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं | आठवीं शताब्दी के प्रारम्भ में चाहमान वंश का राज्य शाकम्भरी (साँभर) था | इनके अन्य राज्य नाडोल, जालोर, धोलपुर, प्रतापगढ़, रणथम्भौर आदि थे | चौहान अजयराज ने अजयमेरु (अजमेर) बसाया था | इस वंश का सबसे प्रतापी राजा पृथ्वीराज तृतीय था जो उत्तरी भारत के अन्तिम हिन्दू सम्राट के नाम से प्रसिद्ध है | चौहानों की 24 शाखाएँ हाडा, देवड़ा, निर्वाण, बालिया, भदौरिया, निकुम्भा, बंकट, खीची, मोहिल, सांचोरा, जोजा, पावेचा, भादरेचा, बोडा, मालाणी, बालेचा, सोनगरा आदि हैं | हाडा चौहानों का राज्य बून्दी व कोटा में तथा देवड़ा चौहानों का राज्य सिरोही में था |

चौहानों की खाँपें और उनके ठिकाने 

1. चौहान :

सूर्यवंशी चौहान नामक वीर पुरुष के वंशज चौहान कहलाते हैं | अजमेर, नाडौल, रणथम्भौर आदि चौहानों के प्रसिद्ध राज्य थे | बीकानेर रियासत में घांघू, ददरेवा प्रसिद्ध ठिकाने थे |

2. चाहिल :

चौहान वंश में अरिमुनि, मुनि, मानिक व जैपाल चार भाई हुए | अरिमुनि के वंशज राठ के चौहान हुए | मानक (माणिक्य) के वंशज शाकम्भरी (सांभर) रहे | मुनि के वंशजों में कान्ह हुआ | कान्ह के पुत्र अजरा के वंशज चाहिल से चाहिलों की उत्पत्ति हुई | (क्यामखां रासा छन्द सं. 108) रिणी (वर्तमान तारानगर) के आस पास के क्षेत्रों में 12 वीं, 13वीं शताब्दी में चाहिल शासन करते थे और यह क्षेत्र चाहिलवाड़ा कहलाता था | आजकल प्रायः चाहिल मुसलमान हैं | गूगामेड़ी (गंगानगर) के पूजारे चाहिल मुसलमान है |

3. मोहिल :

कन्य चौहान के पुत्र बच्छराज के किसी वंशज मोहिल के वंशज मोहिल चौहान कहलाये | (क्यामखां रासा छन्द सं. 108) मोहिल ने बगडियों से छापर-दोणपुर जीता | इन्होनें 13वीं शदी से लेकर 16वीं शदी विक्रमी के प्रारम्भ तक शासन किया | बीका व  बीदा ने मोहिलों का राज्य समाप्त किया | बाद  प्रायः मोहिल चौहान मुसलमान बन गए | प्रसिद्ध कोडमदे माणिक्यराव मोहिल की पुत्री थी |

4. जोड़ चौहान :

का के पुत्र सिध के किसी वंशज के जोड़ले पुत्रों से जोड़ चौहानों की उत्पत्ति हुई | (क्यामखां रासा छन्द सं. 108) वर्तमान झुंझुनूं व नरहड़ इलाके पर विक्रम की 11वीं शदी से 16वीं शदी के प्रथम दशक तक जोड़ चौहान का अधिकार रहा | 16वीं शदी के प्रारम्भ में कायमखानियों ने जोड़ चौहानों से झुंझुनूं का इलाका छीन लिया तथा नरहड़ से पठानों का इलाका छीन लिया | चौहानों की यह खांप अब लोप हो चुकी हैं |

5. पूर्बिया चौहान :

मैनपुरी (उ.प्र.) के पास जो चौहान राजस्थान में आये वे यहाँ पूर्बिया चौहान कहलाये क्योंकि मैनपुरी राजस्थान के पूर्व में है | मैनपुरी के पास से चन्दवाड़ से चन्दभान चौहान अपने चार हजार वीरों के साथ खानवा युद्ध वि. 1584 में राणा सांगा के पक्ष में आये तथा मैनपुरी के पास स्थित राजौर स्थान के माणिकचन्द चौहान भी खानवा युद्ध में राणा सांगा के पक्ष में लड़े | इन दोनों के वंशज पूर्बिया चौहान कहलाते हैं |

6. सांभरिया चौहान :

सांभर क्षेत्र से निकलने के कारण सांभरिया चौहान कहलाये |

7. भदौरिया चौहान :

वीर विनाद में श्यामलदासजी ने लिखा है कि किसी पूर्णराज चौहान ने भदोर क्षेत्र पर अधिकार किया | अतः पूर्णराज चौहान के वंशज भदौरिया कहलाये | इटावा (जिला आगरा) क्षेत्र व कुछ भाग जिला झुंझुनूं के कुछ भाग पर भदौरियों का राज्य रहा था |

8. रायजादे चौहान :

राजपूत वंशावली में ईश्वरसिंह मढाढ़ ने चौहानों की खांपों में रायजादे चौहान भी लिखे हैं | उन्होंने लिखा है कि विग्रहराज चतुर्थ के पुत्र गागेय के बाद अजमेर की गद्दी पर बैठने वाले राजा के प्रति विद्रोह हुआ | नागार्जुन चौहान बचकर फतहपुरा (यु.पी.) की तरफ चला गया | वहीं उसने अपना नाम रायमन सहदेव रखा | उसके वंश रायजादे चौहान कहलाये | अब यह बांदा, फतहपुर, इलाहबाद आदि जिलों में रहते हैं | (राजपूत वंशावली पृ. 157)

9. चाहड़दे चौहान :

नीमराणा के चौहानों से निकास बताया जाता है परन्तु चाहड़दे सोमेश्वर का पुत्र और पृथ्वीराज चौहान का भाई था | (टॉडकृत राजस्थान अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ.429) अतः चाहड़देव की उत्पत्ति उपर्युक्त चाहड़देव से होनी चाहिए | ये राजस्थान के अलवर क्षेत्र व हरियाना में फैले हुए हैं |

10. नाडौललिया :

नाडौल के निकास के कारण नाडौलिया चौहान कहलाये | लाखन नाडौल के 24 पुत्रों से चौहानों की 24 खांपों के निकास की बात कही जाती है पर यह मत इतिहास की कसौटी पर सही नहीं उतरता | पर हाँ यह सत्य है कि लाखन के वंशधरों से ही चौहानों की अधिकतर खांपों का निकास हुआ है |

11. सोनगरा चौहान :

नाडौल राज्य के संथापक लक्ष्मण के बाद क्रमशः बलिराज, विग्रहराज, महेन्द्रराज, अहिल, अणहिल, जेन्द्रराज, आसराज व अल्हण हुए | अल्हण के पुत्र कीर्तिपाल (कीतू) ने जाबालीपुर (जालौर) विजय किया | जाबालीपुर को स्वर्णगिरि भी कहा जाता था | इस स्वर्णगिरि (जालौर) के चौहान कीतू के वंशज स्वर्णगिरि (सोनगरा) चौहान कहलाये | जालौर इनका मुख्य राज्य था | सोनगरे चौहान बड़े वीर हुए हैं | इनमें कान्हड़देव व उनके पुत्र वीरमदे इतिहास में प्रसिद्ध हैं | अखेराज सोनगरा ने सुमेल के युद्ध में एक सेनापति के रूप में अद्भुत वीरता दिखाते हुए वीरगति प्राप्त की |

12. अखैराज सोनगरा :

जालौर के प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव सांवतसिंह, सोनगरा के पुत्र थे | इनके छोटे भाई मालदेव थे | मालदेव के बाद क्रमशः बलवीर, राणा, लोला, सत्ता, खींवा, रणधीर व  अखैराज हुए | (नैणसी भाग 1 पृ. 205-206) इसी अखैराज के वंशज अखैराज सोनगरा कहलाते है | अखैराज अपने समय के बड़े वीर हुए | ये पाली ठिकाने के अधिपति थे | उनकी पुत्री जयन्ती देवी राणा उदयसिंह की ब्याही थी | जिनके गर्भ से महाराणा प्रताप जैसे रणभट्ट उत्पन्न हुए |

सोनगरों की निम्न खांपें हैं : 

1. बोडा :

कीर्तिपाल (जालौर) के बाद क्रमशः समरसिंह, भाखरसी व बोडा हुए | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 245) इसी बोडा के वंशज बोड़ा सोनगरा हैं | जालौर जिले में सेणा परगना इनके अधिकार में था | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 245)

2. रूपसिंहोत :

रूपसिंह सोनगरा के वंशज | राजस्थान के पाली जिले में हैं |

3. मानसिंहोत :

अखैराज सोनगरा के पुत्र मानसिंह के वंशज पाली जिले में हैं |

4. भानसिंहोत :

अखैराज सोनगरा के पुत्र भानसिंह के वंशज | पाली जिले में हैं | बीकानेर, जोधपुरा आदि इलाकों  सोनगरा चौहान निवास करते हैं |

5. चांदण :

सोनगरा चौहानों की शाखा है | शीशेदा का राणा हम्मीर अरिसिंह भी चंदाना चौहान राणी का पुत्र था |

6. हापड़ :

कीर्तिपाल (कीतू) जालौर के बाद क्रमशः समरसिंह उदयसिंह, चाचकदेव व सामन्तसिंह हुए | सामन्तसिंह के बड़े पुत्र कान्हड़देव जालौर के शासक हुए | छोटे पुत्र हापड़ सोनगरा कहलाये |

7. बाघोड़ा :

कान्हड़दे (जालौर) के पुत्र वीरमदे के भतीजे बाघ के वंशज बाघोड़ा सोनगरा कहलाये | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 84) बीकानेर के पास नाल गांव में बघोड सोनगरा हैं | (जीवराजसिंह भाति के सौजन्य से )

1.) भीला बघोड़ :

वीरमदे के भतीजे बाघ के पुत्र भीला के वंशज | (बहादुरसिंह बीदासर ने भीला को वीरमदे का भतीजा लिखा है परन्तु भीला बघोड़ है | अतः वह बाघा का पुत्र होना चाहिए | वीरम का भतीजा नहीं |)

2.) रोहेचा बाघोड़ा :

रोह गांव में रहने के कारण बाघ के वंशज रोहेचा बाघोड़ा कहलाये |

8. बालेचा :

सोनगिरों की शाखा है | किसी बाला नामक के वंशज बालेचा हो सकते है | टोडा (मालपुरा) में पहले इनका शासन था | (राजपूत वंशावली पृ. 155 )

9. अबसी :

कीर्तिपाल जालौर के पुत्र अबसी की सन्तान अबसी कहलाये | (नैणसी री ख्यात भाग पृ. 169)

13. मादेचा :

वीर विनोद में किसी लालसिंह नामक चौहान के मद्रदेश में जाने के कारण वंशजों को माद्रचा लिखा है | (वीर विनोद भाग 2 पृ. 103) क्षत्रिय जाति सूचि में माणकराज के वंशज लालसिंह के वंशधरों को मद्रदेश के कारण माद्रेचा लिखा है | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 1) इनका देसूरी में राज्य था | राणा रायमल का चितौड़ के समय देसूरी में राज्य था | राणा रायमल चितौड़ के समय सोलंकियों ने इनका राज्य छीन लिया | जिला उदयपुर में मादड़ी गांव है | उदयपुर राज्य में ही देसूरी में इनका राज्य था | नालसिंह कौन थे ? कब मद्र गए ? कोई साक्ष्य नहीं है | मालूम होता है कि मादड़ी गांव में रहने के कारण मादडेचा (माद्रेचा) चौहान कहलाये | जैसे महेवा स्थान के नाम से महेचा राठौड़ों की उत्पत्ति हुई | बहुत सम्भव है ये माद्रेचा लाखन नाडौल के वंशज हो |

14. नार चौहान :

बहीभाटों के अनुसार लाखण के वंशज हैं | मारवाड़ में है | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 94)

15. घूंघेट  (धंधेर) :

माणकराज सांथर के वंशज किसी धूधेट चौहान के वंशज बताये जाते है | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 82) कोटा जिले में शाहबाद दुर्ग पर कभी इनका अधिकार था | (टॉड कृत राज. अनु. केशवकुमार पृ. 724) वि. सं. 1715 के धर्मात के युद्ध में राजा इन्द्रमणि धंधेर औरंगजेब के पक्ष में लड़ा था |

16. सूरा और गोयलवाल :

टॉड के चौहानों की 24 खांपों में सूरा और गोयलवाल भी अंकित की है | परन्तु इनकी उत्पत्ति का पता नहीं लगता | क्यामखां रासा में लिखा है :-

मनिराई के जानियो, भयो राइ भूपाल |
कहकलंग ताके भये सूरा गोत गुवाल ||

इससे अनुमान होता है कि कहकलंग चौहान (राज) के वंशजों से इन दोनों खांपों का निकास हुआ है |

17. मालानी :

संभवतः मालानी क्षेत्र पर शासन करने के कारण ये मालानी चौहान कहलाये | लाखन नाडौल के वंशज होना समीचीन है |

18. पावेचा :

संभवतः लक्ष्मण नाडौल के वंशज है जैसलमेर क्षेत्र में है |

19. देवड़ा:

  1. बावनगरा देवड़ा
  2. मामवला देवड़ा
  3. बड़गामा देवड़ा
  4. बागड़िया देवड़ा
  5. बसी देवड़ा
  6. कितावत देवड़ा
  7. गोसलावत देवड़ा
  8. डूंगरोत देवड़ा
  9. शिवहीहोत देवड़ा
  10. लखाव देवड़ा
  11. बालोत देवड़ा
  12. हाथियोत देवड़ा
  13. चीबा देवड़ा
  14. सांचौर चौहान
  15. कांपलिया चौहान
  16. निर्वाण चौहान
  17. बागड़िया चौहान

अन्य खांपें :

विभिन्न पुस्तकों में  अन्य खापों के नाम मिलते है पर न तो उनकी उत्पत्ति का पता चलता है और न ही वर्तमान में उनके निवास स्थान का | फिर भी जानकारी क लिए उन खांपों को यहाँ अंकित किया जाता है |

टॉड के अनुसार :

पाविया, सक्रेचा, भूरेचा, चाचेरा, रोयि, चादू, निकुम्प, भांवर व बंकट |

नैणसी के अनुसार :

रावसिया, गोला, डडरिया, बकसरिया, सेलात, बेहाल, बोलत, गोलासन, नहखन, वैस, सेपटा, डीमणिया, हुरडा, महालण, बंकट |

बहादुरसिंह जी बीदासर के संग्रह अनुसार :

पंजाबी, टंक पंडिया, गुजराती, बंगड़िया, गोलवाल, पूठवाल, मलयचा, चाहोड़ा, हरिण, माल्हण, मुकलारा, चक्रडाणा, सूवट, चित्रकारा, भैरव, क्षयरव, अभ्रवा, व्याघोरा, सरखेल, मोरचा, पबया, बहोला, गजयला, तिलवाड़ा, सरपटा, चित्रावा, चंडालिका, बडेरा, मोरी, रेवड़ा, चंदणा, बंकटा, वत्स्ला, पावचा, झुमरिया, तुलसीरच्छण, सलावत, डीडुरिक, बच्छगोती, राजकुवार, राजवार, चारगे, मोतिया, मानक, अबरा, गोठवाल, जाम, बड्ड, मालण पचवाणा (लालसोट में हैं ), छाबड़ा (बनिया हैं), आदरेचा, बागडेचा, मानभवा, बालिया, जोजां, जनवार, (अवध में बलरामपुर ठिकाना था) (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 92 से 89 व 62)

बकाया राजपुताना अनुसार :

संगरायचा, भूरायचा, बिलायचा, तसीरा, चचेरा, रोसवा, चुंदू, निकुम्प, भवर, बाकेता, मलानी (नेपाल), गिरामण्डला (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 13) कप्तान पिंगले ने युक्त प्रदेशों में चौहानो की निम्न खांपे बताई है- विजय-सयहिया, खेरा, पूया, भाहू, कमोदरी, कनाजी, देवरिया, कोपला, नाहिरया, कसमीड, आवेल, बाली, बनाफर, गलख, बरहा, चलेय, सराल, रामचन्द्र व चितरंग चौहान (पंजाब में है) (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 64)

20. हाड़ा चौहान :

हाड़ा चौहानों की प्रसिद्ध खांप है | नैणसी ने अनपर ख्यात में लिखा है कि आसराज नाडौल (1167-1172 वि.) के पुत्र माणकराव के बाद सम्भराणस, जैतराव, अनगराव, कुंतसी विजयपाल व  हाड़ा हुए | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 101) हाड़ा के वंशज आगे चलकर हाड़ा चौहान हुए |

हाड़ा चौहानों की खांपें :

1. धुग्धलोत :

बंगदेव हाड़ा के पुत्र धुग्धल के वंशज धुग्धलोत हाड़ा हुए |

2. मोहणोत :

बंगदेव के पुत्र मोहन हाड़ा के वंशज |

3. हत्थवत :

बंगदेव के पुत्र देवा हाड़ा के पुत्र हत्थ के वंशज |

4. हलूपोता :

देवा हाड़ा के पुत्र हरिराज के पुत्र हलु के वंशज हलूपोता हाड़ा कहलाये | हलूपोतों में आगे चलकर पांच शाखायें हुई- चचावत, कुंभावत, बासवत, भोजवत और नयनवत |

5. लोहराज :

हरिराज के पुत्र लोहराज के वंशज है | लोहराज हाड़ा गुजरात में है |

6. हरपालपोता :

रावदेवा के पुत्र समरसिंह के पुत्र हरपाल के वंशज |

7. जतावत :

राव समरसिंह के पुत्र जैतसी के वंशज |

8. खिजूरी का :

समरसिंह के पुत्र डूंगरसी को खिजूरी गांव जागीर में मिला | इसी गांव के नाम से डूंगरसी के वंशज खिजूरी का हाड़ा कहलाते थे |

9. नवरंगपोता :

समरसिंह ददी के पुत्र नवरंग के वंशज नवरंगपोता कहलाये |

10. थारूड़ :

नवरंग के भाई थिरराज या थारुड़ के वंशज थिरराज पोता या थारुड़ हाड़ा कहलाये |

11. लालावत :

बूंदी के शासक नापा समरसिंहोत के पुत्र हामा के पुत्र लालसी के वंशज | लोलावतों की आगे चलकर दो शाखायें निकली, जैतावत न नवब्रह्म लालसी के पुत्र थे |

12. जाबदू :

हामा के पुत्र वीरसिंह के पुत्र जाबदू के वंशज |

1.) सांवत का :

जाबदू के पुत्र सारण के पुत्र सांवत के वंशज |

2.) मेवावत :

जाबदू के पुत्र सेव के पुत्र मेव के वंशज |

13. अखावत :

बदी नरेश वीरसिंह के पुत्र बैरीशाल के पुत्र अखैराज के वंशज |

14. चूंडावत :

अखैराज के भाई चूंडा के वंशज |

15. अदावत :

अखैराज के भाई उदा के वंशज |

16. बूंदी नरबदपोता :

बूंदी शासक बैरीशाल के पुत्र राव सुभांड के पुत्र नरबद के वंशज |

17. भीमोत :

नरबद के पुत्र भीम के वंशज |

18. हमीरका :

नरबद के पुत्र पूर्ण के पुत्र हम्मीर के वंशज |

19. मोकलोत :

नरबद के पुत्र मोकल के वंशज |

20. अर्जुनोत :

नरबद के पुत्र अर्जुन के वंशज |

अर्जुनोतों की शाखायें

1.) अखैपोता :

अर्जुन के पुत्र अखै के वंशज |

2.) रामका :

अर्जुन के पुत्र राम के वंशज |

3.) जसा :

अर्जुन के पुत्र कान्धन के पुत्र जसा के वंशज |

4.) दूदा :

अर्जुन के बेटे सुरजन के पुत्र के दूदा दूदा के वंशज |

5.) राममनोत :

सुरजन के पुत्र रायमल के वंशज |

21. सुरतानोत :

नरबद के बड़े भाई बूंदी के राव नारायण के पुत्र सूर्यमल के पुत्र सुरतान के वंशज |

22. हरदाउत :

सुरजन के बड़े पुत्र रावभेज के पुत्र हदयनारायण के वंशज | कोटा राज्य में करवाड़, गैंता, पूसोद, पीपला, हरदाउतों के ठिकाने थे | इनको हरदाउत कोटडिया कहा जाता है |

23. भेजावत :

राव भेज के पुत्र केशवदेव को ढीपरी सहित 27 गांव मिले | केशवदेव के वंशज पिता भोज के नाम पर भोजपोता कहलाये | इनके पुत्र हरीजी के वंशज हरीजी का हाड़ा व जगन्नाथ के वंशज जगन्नाथ पोता हाड़ा हुए |

24. इन्द्रशालेत :

राव रतनसिंह के पौत्र और गोपीनाथ के पुत्र अन्द्रशाल के वंशज अन्द्रशालनोत हाड़ा कहलाते थे | इन्होने इन्द्रगढ़ नाम का शहर बसाया | यहाँ बूंदी राज्य का मुख्य ठिकाना था | इसके अतिरिक्त दूगारी, जूनिया, चातोली आदि इन्द्रशालोत के ठिकाने थे |

25. बैरिशालोत :

कुंवर गोपीनाथ के पुत्र बैरीशाल के वंशज बैरिशालोत हाड़ा कहलाये | करवड़ बलवन, पीपलोदा, फलोदी आदि इनके ठिकाने थे |

26. मोहमसिंहोत :

कुंवर गोपीनाथ के पुत्र मोहकमसिंह के वंशज मोहकमसिंह हाड़ा कहलाये | मोहकमसिंह ने सामूगढ़ (वि. 1715) के युद्ध में वीरगति पाई |

27. माहेसिंहोत :

कुंवर गोपीनाथ के पुत्र माहेसिंह के वंशज माहेसिंहोत हाड़ा कहलाये | जजावर जैतगढ़ आदि इनके ठिकाने थे |

28. दीपसिंहोत :

गोपीनाथ के बाद क्रमशः छत्रशाल, भमसिंह व अनिरुद्ध हुए | अनिरुद्ध के बुद्धसिंह व जोथसिंह के उमेदसिंह व दीपसिंह हुए | इन्हीं दीपसिंह के वंशज दीपसिंहोत है वरूधा इनका ठिकाना था |

29. बहादुरसिंहोत :

उम्मेदसिंह के पुत्र बहादुरसिंह के वंशज बहादुरसिंहोत हाड़ा हैं |

30. सरदारसिंहोत :

उम्मेदसिंह के पुत्र सरदारसिंह के वंशज है |

31. माधाणी :

बूंदी के राव रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह कोटा राज्य के शासक थे | इनके वंशज माधाणी हाड़ा कहलाये | माधाणी हाड़ों की निम्न खांपें हैं :-

1.) मोहनसिंहोत माधाणी :

माधोसिंह के पुत्र मोहनसिंह ने धरमत युद्ध (वि. 1715) में शाहजहां के पक्ष में वीरगति पाई | इनके वंशज मोहनसिंहोत माधाणी कहलाये | पलायथा इनका मुख्य ठिकाना था |

2.) जूझारसिंहोत माधाणी :

माधोसिंह (कोटा) के पुत्र जूझारसिंह ने भी धरमत युद्ध में वीरगति पाई | इनके वंशज जूझारसिंहोत माधाणी कहलाये | इनको पहले कोटा राज्य का कोटड़ा ठिकाना मिला फिर रामगढ़ रेलात दिया गया |

3.) प्रेमसिंहोत माधाणी :

माधोसिंह के पुत्र कन्हीराम ने अपने भाइयों के साथ ही धरमत युद्ध में शाहजहां के पक्ष में लड़कर वीरगति प्राप्त की | इनके पुत्र प्रेमसिंह के नाम से प्रेमसिंहोत माधाणी कहलाये | कोयला इनका मुख्य ठिकाना था |

4.) किशोरसिंहोत माधाणी :

माधोसिंह के पुत्र किशोरसिंह ने भी धरमत युद्ध में राजपूती शौर्य का परिचय दिया | वे युद्ध में लड़ते हुए घायल होकर बेहोश हो गए पर बच गये इनको बाद में सांगादे का ठिकाना मिला | बाद में कोटा की गद्दी पर बैठे | औरंगजेब के शासनकाल में कई योद्धों ने भाग लिया | वि. सं. 1753 में औरंगजेब के पक्ष में मराठों के विरुद्ध लड़ते हुए काम आया | इनके वंशज किशोरसिंहोत माधाणी कहलाये |

21. खींची चौहान :

खींची चौहानों की उत्पत्ति विवाद से परे नहीं है | नैणसी के समय तक यही माना जाता था कि इनके आदि पुरुष माणकराव ने ग्वारियों की खिचड़ी खाई थी और इसी कारण खींची कहलाये | बाद में माधोसिंह खींची ने कल्पना की कि सांभर के चौहान अपनी बात को खींचते थे, यानि निभाते थे | अतः खींची कहलाये | यदि सांभर के चौहानों के लिए यह उक्ति प्रसिद्ध होती तो समस्त चौहान ही खींची कहलाते, पर ऐसा नहीं है, चौहानों की अनेक खांपे हैं | पहले के किसी भी ख्यात में या ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख नहीं है | अतः इसे कल्पना ही माना जावेगा | लगता है खींचियों के आदि पुरुष के सन्दर्भ में खिचड़ी सम्बन्धी कोई घटना घट गई है और इसी आधार पर खिचड़ी का विकृत रूप खींची हो गया लगता है या फिर लक्ष्मण (नाडौल) के पुत्र आसराज के पौत्र अजबराव का  खींची नाम पड़ने के सन्दर्भ में कुछ नहीं कहा जा सकता |

बूंदी राज्य में घाटी, घाटोली, गगरूण, गूगोर, चाचरणी, चचरड़ी खींचियों के ठिकाने थे (नैणसी री ख्यात भाग 1 115) तथा राघवगढ़, धरमावदा, गढ़ा, नया किला, मकसूदगढ़, पावागढ़, असोधर (फतेहपुर के पास) व  खिलंचीपुर (मालवा) खींचियों के राज्य थे | ( राजपूत वंशावली पृ. 153)

चौहानों के अन्य ठिकाने :

राजस्थान में चितलवाना, कारोली, डडोसन, सायला (जालौर), कल्याणपुर (बाड़मेर), संखवास (नागौर), जोजावर (पाली), नामली उजेला, झर, संदला, उमरण, पीपलखूटा मालकोइ आदि रतलाम रियासत (म. प्र.) चौहानों का एक ठिकाना था (बहादुरसिंह सोनगरा के सौजन्य से), मुण्डेटी (गुजरात) आदि सोनगरा चौहानों के मुख्य ठिकाने थे |

चौहान वंश की कुलदेवी 

चौहानों की कुलदेवी शाकम्भरी माता है। शाकम्भरी देवी (Shakambhari Mata) का प्राचीन सिद्धपीठ जयपुर जिले के साँभर (Sambhar) क़स्बे में स्थित है। शाकम्भरी माता साँभर की अधिष्ठात्री देवी हैं।शाकम्भरी दुर्गा का एक नाम है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- शाक से जनता का भरण-पोषण करने वाली। शाकम्भरी माता का मंदिर साँभर से लगभग 18 कि.मी. दूर अवस्थित है। शाकम्भरी देवी का स्थान एक सिद्धपीठ स्थल है जहाँ विभिन्न वर्गों और धर्मों के लोग आकर अपनी श्रद्धा-भक्ति निवेदित करते हैं

नाडौल के चौहान आशापूरा माता को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। आशापूरा माता भी मूलतः शाकम्भरी माता का ही रूप है।

इस वंशावली के प्रकाशन में यदि किसी प्रकार की त्रुटि हो तो हम क्षमा प्रार्थी है। कृपया अपने विचार हमसे साझा करें।