पन्ना धाय खींची चौहान वीर राजपूत कन्या थी। मेवाड़ के महाराणा संग्रामसिंह की मृत्यु के पश्चात् चित्तौड़ की राजगद्दी पर विक्रमादित्य बैठा परन्तु थोड़े समय पश्चात् ही उस अयोग्य और निकम्मे महाराणा को हटाकर राणा सांगा के छोटे पुत्र उदयसिंह को मेवाड़ का शासक नियुक्त किया। उदयसिंह की अवस्था अभी छ: वर्ष की ही थी और उसकी माता का देहान्त हो चुका था। बालक उदयसिंह की परवरिश का भार पन्ना धाय पर था। मेवाड़ के राजघराने में आन्तरिक कलह के कारण बड़ी नाजुक स्थिति थी और ऐसी संकटपूर्ण घड़ी में किसी प्रकार के अनिष्ट हो जाने की सम्भावना थी। मेवाड़ के राजकुल का दीप उदयसिंह पन्ना की देखरेख में रखा गया क्योंकि वह स्वामीभक्त, वीर और अदम्य साहसी नारी थी।
अभी कुछ ही दिन बीते थे, उदयसिंह को राणा की पदवी प्राप्त हुए कि पन्ना की परीक्षा की घड़ी आ गई। बनवीर नामक एक दासी पुत्र ने चित्तौड़ की राज्य गद्दी हथियाने का प्रयास किया। उसकी गतिविधि की खबर पन्ना को लगी तो वह बड़ी चिन्तित हो गयी। बनवीर ने क्रूरता और नृशंसता से राजकुल के लोगों की हत्या की। अब उदयसिंह को समाप्त कर निरापद राज्य करने के लिए वह पन्ना के निवास की ओर बढ़ा।
पन्ना को बनवीर के करतूतों की भनक पड़ चुकी थी। उसने किसी भी सूरत में उदयसिंह की रक्षा करने की ठानी। बनवीर के उसके महल की ओर आने का समाचार पाते ही वह उसके उद्देश्य को ताड़ गयी। उसने अपनी विश्वस्त बारी जाती की महिला के साथ उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर ऊपर से पत्तलों से ढककर चुपचाप चित्तौड़ से बाहर भेज दिया और अपने पुत्र को जो उदयसिंह की अवस्था का ही था, उसे राजकुमार के कपड़े पहना कर पलंग पर सुला दिया।
बनवीर शीघ्रता से हाथ में नंगी तलवार लिए उदयसिंह की तलाश करता हुआ आया और पन्ना से पूछा – “उदयसिंह कहां है ?” पन्ना ने पलंग पर सोये पुत्र की ओर अंगुली से संकेत किया, इसके पहले बनवीर ने तलवार के एक ही प्रहार से पन्ना के अबोध बालक चन्दन का सिर धड़ से अलग कर दिया।
मेवाड़ के राजकुल के गौरव और आशादीप राजकुमार उदय सिंह के प्राणों की रक्षार्थ अपने पुत्र की बलि देने वाली इस वीर जननी के इस अनुपम और बेजोड़ त्याग का उदाहरण विश्व के इतिहास में अन्यत्र मिलना कठिन है। मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास के समान ही पन्ना धाय का बलिदानी इतिहास भी भुलाया नहीं जा सकता।
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