शिव एक प्रमुख हिंदू देवता हैं जो हिंदू धर्म में सर्वोच्च त्रिदेवों में से एक तथा संहारक के रूप में जाने जाते हैं । शिव को हिंदू धर्म के शैव संप्रदाय में प्रमुख देवता के रूप में भी माना जाता है। हिन्दू त्रिदेवों ब्रम्हा, विष्णु व महेश में महेश ही शिव है। जहाँ ब्रम्हांड की उत्पत्ति व विनाश का चक्र शिव से ही माना जाता है वहीँ उन्हें तपस्वी तो कला का सृजन करने वाला भी माना जाता है। ब्रम्हांड के प्रथम व सर्वोत्तम नर्तक अर्थात नटराज कहिये या ध्यान, कला तथा योग के संरक्षक आदियोगी कह लीजिये, औषधि के स्वामी वैद्यनाथ कह लीजिये सर्वत्र शिव ही तो है।
शिव को अक्सर (त्रिनेत्र) तीसरी आँख के साथ चित्रित किया जाता है, जो उनकी अंतर्दृष्टि और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही वही तीसरी आँख संहार व विनाश का भी पर्याय रही है। पौराणिक मान्यता है कि एक विशाल अग्नि पुंज जो कि ब्रम्ह अर्थात शिव के त्रिनेत्र से उत्पन्न हुई ऊर्जा पुंज था समस्त ब्रम्हांड में घूमने लगा। यह वह वक्त था जब न समय था न कोई कालखंड। किन्तु वह अग्नि पुंज समस्त सृष्टि के संहार के लिए काफी था। यहाँ अग्नि पुंज या एक विस्फोट शिव के क्रोध से उत्पन्न हुआ था। आज के विज्ञान में इसे ही बिग बैंग थ्योरी कहा जाता है। जब शिव को लगा कि इससे समस्त सृष्टि का विनाश हो जायेगा तो शिव ने स्वयं अपने क्रोध को काबू में करने के लिए योग व ध्यान का सहारा लिया। यही थी शुरुआत योग की, जिसकी वजह से आज शिव को आदियोगी भी कहा जाता है। और इस योग का जन्मस्थान माना जाता है देवभूमि हिमालय की पर्वत श्रंखलाओं को जहाँ शिव ने कठोर तप, योग कर अपने क्रोध को काबू किया जिससे श्रष्टि पर आने खतरे से बचा गया।
शिव की आराधना करने वाले शिव को लिंग रूप में पूजते आये हैं। परन्तु उनके इस रूप में आने का कारण क्या है ? क्या है इसके पीछे की कहानी ? माना जाता है की एक बार ब्रम्हाजी तथा विष्णुजी में इस बात को लेकर ठन गई की दोनों में से महान कौन है। तभी शिवजी के द्वारा एक प्रकाश स्तम्भ प्रकट हुआ। आकाश से एक आकाशवाणी हुई कि जो इस स्तम्भ के अंत को ढूंढ लेगा वही महान कहलायेगा। ब्रम्हाजी ने एक श्वेत हंस का रूप लेकर ऊपर की ओर उड़ान भरी तथा विष्णुजी ने वराह रूप लेकर पाताल की ओर रुख किया। किन्तु विष्णु जी को कही अंत नहीं मिला और वे लौट आये। ब्रम्हा जी ने अंत न मिलाने पर भी लौट कर झूट का सहारा लिया और अंत मिलने का कहा। इस झूंट से रुष्ट होकर शिवजी ने ब्रम्हा जी के एक सर को उनके शरीर से अलग कर दिया। परन्तु वह कटा हुआ सर उनके हाथ से चिपक गया।
ब्रम्ह हत्या का बोझ लेकर उसका पाश्चात्यप करने के लिए शिवजी उस सर को लिए तीनो लोकों में घूमते रहे। परन्तु जैसे ही शिवजी काशी की धरती पर पहुंचे उनके हाथ से ब्रम्हाजी का सर गिर गया। तब शिवजी को यह ज्ञात हुआ कि यह धरती मोक्ष दायनी है। इसलिए ही आज भी लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए काशी का रुख करते है। भगवान शिव के द्वारा अवतरित वह स्तम्भ पृथ्वी पर जहाँ जहाँ से प्रकट हुआ वह स्थान आज शिवजी के ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजित है। तथा उसी स्तम्भ के रूप को शिवलिंग का रूप मानकर सारे संसार में पूजा जाता है।
शिवरात्रि
आज भी शिवरात्रि के दिन को शिव-शक्ति के विवाह के दिन के रूप में मनाया जाता है। यह माना जाता है कि शिव के तपस्वी रूप से मोहित हो राजा हिमवान (हिमालय) व रानी मैनावती की पुत्री देवी पार्वती ने शिव के सामान बनने के लिए घोर तपस्या की तथा शक्ति रूप प्राप्त किया। तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनका हाथ माँगा। जब उनकी शादी की तैयारी हुई तो उनकी बारात को देखकर हर कोई अचंभित व भयभीत हो गया। शिवजी ने अपने शरीर पर भस्म रमा राखी थी व नंदी पर सवार हो कर अपने साथ भूत, पिशाच, प्रेत व राक्षश लेकर शादी करने पहुंचे थे। यह देख कर राजा हिमवान क्रोधित हो गए परन्तु देवी पार्वती के मनाने पर वह तैयार हो गए व उनका विवाह सम्पन हुआ। वह स्थान वर्तमान में उत्तराखंड में सोनप्रयाग के निकट स्थित त्रियुगीनारायण नामक गाँव के रूप में आज भी स्थित है। आज भी तीन युगों से भगवान शिव व देवी पार्वती के विवाह के हवन कुंड की अग्नि प्रज्वलित है। आज भी लोग शिवरात्रि के पावन दिन यहाँ आकर उस पावन अग्नि के संमुख विवाह करते हैं।
शिव परिवार
आज भी लोग प्रतिदिन शिव को जल अर्पित कर दिन की शुरुआत करते है साथ ही शिव परिवार की भी पूजा की जाती है। शिव परिवार में शिव पार्वती के साथ उनके पुत्रों गणेश जी व कार्तिकेय जी की भी पूजा की जाती है। क्या आप जानते है कार्तिकेय जी व गणेश जी के जन्म के बारे में ?
मान्यता है कि शिव पार्वती के मिलन से होने वाली संतान के तेज को सोचकर सभी देवता घबरा गए थे तो उन्होंने उनके मिलन में बाधा पहुंचाई जिसके कारण भगवान शिव का वीर्य इधर उधर गिर गया जिसे कई लोगों ने प्राप्त किया। अग्नि ने प्राप्त कर अपना प्रभाव बढ़ाया, गंगा ने भी प्राप्त किया जिससे कार्तिकेय का जन्म हुआ जो कि शिव के तेज व ऊर्जा का प्रतिक माना जाता है। उसी प्रकार जब शिवजी जब कैलाश पर तपस्या करने गए थे तो पार्वती जी ने मिटटी से बालक की मूर्ति बनाई तथा उसमे प्राण डाल दिए। उस बालक को पार्वती ने नाम दिया विनायक। जब शिव कैलाश प्रवास से लौटे तब पार्वती जी स्नान करने गई हुई थी तथा विनायक को उन्होंने बहार ध्यान रखने को कहा। जब शिवजी वहाँ आये तो विनायक ने उन्हें जाने से रोका व अपना कर्तव्य पूरा किया। किन्तु शिवजी इससे क्रोधित हो गए और उन्होंने विनायक का सर काट दिया। जब पार्वती जी ने अपने मानस पुत्र को इस प्रकार देखा तो वे शोक में डूब गई। तब शिव ने एक हाथी के सर को काट कर विनायक के सर के स्थान पर लगाया व उन्हें फिर से जीवित किया। तथा अपने पुत्र के रूप में माना। इस प्रकार उनके दो पुत्र थे परन्तु इनके अलावा भी शिव पार्वती के एक और औलाद थी जिसका बहुत काम लोगों को पता है।
शिव पार्वती की तीसरी औलाद के रूप में एक पुत्री थी जिसका जन्म भी दैविक रूप में ही हुआ था। पद्म पुराण के अनुसार जब शिव कैलाश से लौटे व पार्वती के साथ घूमते हुए नंदन वन में गए तथा कल्पवृक्ष के निचे पहुंचे तो वहाँ वार्तालाप करते हुए पार्वती ने पुत्री कामना की बात शिवजी से कही। कल्पवृक्ष को इच्छा पूर्ति करने वाला माना जाता था। पार्वती की भी इच्छा कल्पवृक्ष ने पूर्ण करदी व उन्हें कन्या रूप में पूर्ति प्रदान की। तब शिव पार्वती ने उसका नाम अशोक सुंदरी नाम दिया अर्थात शोक को दूर करने वाली।
शिवलिंग की पूजा करने वालों में बहुत से भक्त हैं जो ये नहीं जानते है कि शिवलिंग में जिस स्थान से जल बहकर निकलता है, वह अशोक सुंदरी का स्थान है. अशोक सुंदरी की पूजा सोमवार के दिन की जाती है। मान्यता है कि आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर अशोक सुंदरी की पूजा करने से आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता हैं। अशोक सुंदरी का विवाह महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में पीला बढे नहुष से हुई जो कि देवराज इंद्रा के समान बलशाली था। बाद में अशोक सुंदरी ययाति नामक वीर तथा १०० पुत्रियों की माता बनी।
शिव की कथा अनंत हैं जिसका किसी भी लेख में समाहित करना किसी लेखक के लिए असंभव हैं अतः अभी के लिए इस भाग में इतना ही वर्णित कर पाउँगा। आगे के भाग में शिव के बारे में चर्चा करने के वादे के साथ ॐ नमः शिवाय !
I am Gagan Singh Shekhawat, a renowned online marketer with extensive experience and expertise in internet marketing. Beyond my professional career, I have always carried a deep desire to unfold the majestic and mystical glory of India and share it with the world. From this vision, the foundation of ‘Our Society’ was born-an initiative that is truly my brainchild.
Through Our Society, I strive to cover every aspect of India’s identity-be it social, cultural, political, or historical-leaving no stone unturned. I firmly believe in the power of blogging to inspire and create impact, and with this belief, I introduced the unique concept of Our Society to help people discover and experience the magnificent heritage and essence of India.