गुजरात प्रान्त में काकरेची प्रदेश के अन्तर्गत दियोधर नाम का गाँव है। अगराजी बाघेला दियोधर के ठाकुर थे और काकरेची उन्हीं की पुत्री थी। काकरेची बहुत बुद्धिमान थी। काकरेची बाघेली की काव्य-सृजन में रूचि थी। इस विदुषी महिला का विवाह मारवाड़ के पश्चिम में स्थित सांचोर परगने के सोनगरा चौहान राव बल्लू पुत्र नरहरदास के साथ हुआ था।
नरहरदास अपने पिता की भांति बड़ा वीर और साहसी था। सच्चे क्षत्रिय की भांति वह शाहजहाँ के लड़के से युद्ध करते हुए रणखेत रहा। इसकी सूचना जब काकरेची के पास पहुंची तो तत्काल उसने विधवा वेश धारण कर अपनी पति परायणता का परिचय दिया। नरहरदास की शक्ल से मिलता-जुलता व्यक्ति नरहरदास का वेश बनाकर उसके पिता अगराजी के पास आया। अपने आपको नरहरदास बताकर काकरेची सतीत्व भंग का यह एक षड़यन्त्र था। उसके भुलावे में काकरेची बाघेली के पिता अगराजी गये और अपनी पुत्री को समझाया कि नरहरदास जीवित है और उनके रणखेत की घटना असत्य है। अतः तुम अपने वैधव्य के प्रतीक इन वस्त्रों को उतार कर सुहागिन का वेश धारण करो।
काकरेची बाघेली, जिसे अपने पति पर भरोसा था और उसके वीरोचित स्वभाव से वह परिचित थी कि वह शत्रु के हाथ पराजित होकर जीवित घर नहीं लौट सकते, अपने संकल्प पर दृढ़ रही। पिता द्वारा भरोसा दिलाने के उपरान्त भी उस वीर नारी के ह्रदय में किसी तरह का असमंजस नहीं हुआ। अपने पिता को उत्तर देते हुए काकरेची बाघेली ने निवेदन किया —
धर काळी काकर धरा, अध काळा अगरेस।
नरहर नेजां बाजिया, क्यों पलटाऊ बेस।।
अन्त में यह सत्य सबके सामने प्रकट हो जाता है कि नरहरदास जीवित नहीं हैं। उसका रूप बनाकर आने वाला हमशक्ल कोई दूसरा ही व्यक्ति था और धोखा देने की नीयत से आया था। परन्तु इस प्रकार के छलावे में काकरेची बाघेली जैसी वीर राजपूत नारी कब आने वाली थी।
डा.विक्रमसिंह राठौड़,गुन्दोज
राजस्थानी शोध संस्थान, चोपासनी, जोधपुर
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