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रूपसुंदरी – Rupsundari – Great Rajput Women

मुल्तान की राजकुमारी रूपसुंदरी गुजरात के राजा जयशिखर की रानी थी।  रूपसुंदरी का सौन्दर्य अप्रतिम था, फिर भी उसे अभिमान छू तक नहीं गया था। विवेक, विनय और सहिष्णुता आदि गुणों से सम्पन्न होने के कारण उसकी सर्वत्र ख्याति फ़ैल गयी। गुजरात के समीप ही स्थित भुवड नामक राज्य का राजा, जिसकी सैन्य शक्ति गुजरात से बहुत अधिक थी, समृद्धि और रूपसुंदरी की प्रसिद्धि से ललचाकर उस पर आक्रमण कर देता है।  युद्ध का परिणाम पहले ही ज्ञात था फिर भी अपने पति को युद्ध के लिए रूपसुंदरी  ने तैयार किया। युद्ध के भय से पलायन करना या भागना क्षत्रिय का धर्म नहीं होता। क्षत्रिय तो प्रजा की रक्षार्थ युद्ध में प्राणोत्सर्ग करना अपना पुनीत कर्म मानता  है। इसी भाव से जयशिखर ने युद्ध किया उसमें वीरगति को प्राप्त हुआ।



रानी रूपसुंदरी उस समय गर्भवती थी। अपने पति और राज्य को समाप्त हुआ देख वह अपने गर्भस्थ शिशु एवं स्वयं के सतीत्व की रक्षार्थ वन में भाग गई। जंगल में गरीब भीलनी के साथ रहकर अपने कष्ट के दिन बिताने लगी। वहीं उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वनराज रखा। रूपसुंदरी ने अपने पुत्र का लालन-पालन किया और जब वह शस्त्रास्त्र विद्द्या में पारंगत होकर युवावस्था को प्राप्त हुआ तब उसने अपने पिता का बदला लेने की बात वनराज से कही। वनराज ने भीलों की सेना तैयार कर भुवड के राजा पर आक्रमण किया।  युद्ध में उसे परास्त कर अपने देश गुजरात पर पुनः आधिपत्य स्थापित किया। 

रानी रूपसुंदरी के प्रयास और सतत्  प्रेरणा का ही यह परिणाम थे कि पति द्वारा हारे गये राज्य को उसने अपने पुत्र को योग्य और वीर बनाकर पुनः हस्तगत किया। 

डा.विक्रमसिंह राठौड़,गुन्दोज
राजस्थानी शोध संस्थान, चोपासनी, जोधपुर

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