चन्द्रपुर की राजकुमारी मयणल्ल चालुक्य नरेश कर्ण की वीरता पर मुग्ध थी। राजा कर्ण वीर होने के साथ-साथ अत्यन्त सुन्दर भी था, अतः मयणल्ल ने प्रतिज्ञा की कि यदि मैं विवाह करूगी तो कर्ण से ही करूगी अन्यथा कुवारी ही रहूंगी। मयणल्ल के पिता अपनी पुत्री की इस प्रतिज्ञा से बहुत आश्चर्यचकित हुए । वे जानते थे कि मयणल्ल रूपवती नहीं है अत: राजा कर्ण, जो अत्यन्त रूपवान् व वीर है, इसे कैसे स्वीकार करेगा। पुत्री अपने निश्चय पर अटल थी। पिता रात-दिन उसके विवाह की चिन्ता करने लगे।
हाथी देखने के बहाने राजा कर्ण को राज्य सभा से बाहर बुला-कर मयणल्ल ने कर्ण से भेंट की। उनका अभिवादन कर अपना प्रणय निवेदन किया किन्तु कर्ण ने स्पष्ट तौर पर मयणल्ल के साथ विवाह करने से इन्कार कर दिया। राजकुमारी मयणल्ल ने राजा कर्ण को अपने विवेदन और निर्णय से अवगत कराते हुए कहा- “आप जैसे वीर और रूपवान् राजा के लिए मैं योग्य नहीं हूँ फिर भी क्षत्रिय कन्या जिसे एक बार अपना पति चुन लेती है वही उसके जीवन का सर्वस्व हुआ करता है । मैं यह भी जानती हूँ कि मुझ में यह विशेषता नहीं है कि अपने रूप सौन्दर्य और शारीरिक आकर्षण के बल पर आपको आकृष्ट कर सकू पर यह यौवन और सौन्दर्य सदा नहीं बना रहता । ये सांसारिक प्राणियों का मोह जाल है। मैं सच्चे हृदय से आपको चाहती हूं और यदि आप मुझे स्वीकार नहीं करेंगे तो मेरा जीवित रहना व्यर्थ है। मैंने अपने हृदय में आपको प्रतिष्ठापित कर दिया है, अब किसी अन्य पुरुष का स्वप्न में भी स्मरण करना मेरे लिए महापाप है। इस जीवन में नहीं तो अगले जीवन में मैं आपको अवश्य पति रूप में प्राप्त करूगी।”
मयणल्ल के कथन का राजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उसने चिता में जलकर भस्म होने की तैयारी की। राजमाता उदयमती को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने अपने पुत्र कर्ण को बुलाकर मयणल्ल से शादी करने के लिए समझाया। कर्ण और मयणल्ल का विवाह होता है । मयणल्ल ने अपने सुशील और मृदुल स्वभाव व सेवाभाव से पति और सास का मन जीत लिया। मयणल्ल की कोख से ही चालुक्यों के प्रसिद्ध राजा सिद्धराज का जन्म होता है ।
Note: प्रकाशित चित्र प्रतीकात्मक है
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