हंसाबाई मंडोर के राव चूंडा की पुत्री थी । राव रणमल जो चूंडा का पाटवी पुत्र था पर चूंडा ने अपनी गोहिल राणी के कारण छोटे पुत्र कान्हा को राज्य देना चाहा जिससे रणमल महाराणा लाखा (मेवाड़) में जाकर रहा। वहां महाराणा ने उसे चालीस गांव प्रदान किये । राव रणमल की बहिन हंसाबाई की सगाई का नारियल राणा लाखा के पुत्र चूंडा के लिए भेजा । उस समय लाखा ने हँसी में कह दिया “जवानों के नारियल आते हैं, हम जैसे बुढ्ढों के कौन भेजे !” पितृभक्त चूंडा ने पिता की विवाह की इच्छा देख यह रिश्ता लाखा से करवाया और स्वयं ने मेवाड़ की राज्यगद्दी का त्याग किया। चूंडा मेवाड़ की गद्दी का अधिकारी था पर हंसाबाई की शादी इस शर्त पर हुई कि उसका पुत्र मेवाड़ का स्वामी बनेगा ।
हंसाबाई का विवाह महाराणा लाखा से हुआ । महाराणा लाखा के स्वर्गवास होने पर हंसाबाई सती होने लगी तो चूंडा ने उसे रोका क्योंकि उस समय उसका पुत्र मोकल कम अवस्था में ही था । चूंडा ने पिता को दिये वचन के अनुसार मोकल को मेवाड़ का स्वामी बनाया और हंसाबाई को राजमाता । चित्तौड़ में राठौड़ रणमल धीरे-धीरे अपना बर्चस्व स्थापित करने लगा। महाराणा मोकल की चाचा और मेरा ने हत्या कर दी । राव रणमल द्वारा मेवाड़ में बढ़ रहा राठौड़ वर्चस्व अखरा और उसकी भी हत्या कर दी गयी। उसके पुत्र जोधा ने वहां से भागकर अपने प्राण बचाये ।
मोकल की मृत्यु के पश्चात् कुम्भा मेवाड़ का शासक हुआ । इधर जोधा लगातार कई वर्षों से मंडोर पर अपना आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश करता रहा । अपने भतीजे की इस स्थिति से हंसाबाई का मन पसीजा और उन्होंने अपने पौत्र कुम्भा को एक दिन कहा- “मेरा विवाह चित्तौड़ में होने के बाद राठौड़ों को हर प्रकार से हानि ही उठानी पड़ी है । मोकल की हत्या करने वाले हत्यारों को रणमल ने मारा और हर प्रकार से मेवाड़ की सेवा करने वाले मेरे भाई की भी हत्या हुई और अब उसका पुत्र राज्यविहीन होकर भटक रहा है ।” कुम्भा की सहमति प्राप्त करने के पश्चात् हंसाबाई ने आशिया डूला के साथ जोधा को मंडोर पर अधिकार करने का संदेश भेजा । जोधा ने मंडोर पर अधिकार किया और हंसाबाई के सहयोग से राठौड़ राज्य को मारवाड़ में स्थायित्व प्रदान किया ।
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