ताराबाई भौंसले – Tarabai – Great Rajput Women

ताराबाई भौंसले - Tarabai – Great Rajput Women

ताराबाई भौंसले छत्रपति शिवाजी की पुत्र-वधू थी। यह वीरांगना राजाराम की पत्नी थी। शिवाजी के द्वितीय पुत्र राजाराम की यह पत्नी बड़ी वीर और साहसी थी। शिवाजी की मृत्यु के बाद शम्भाजी और शम्भाजी के बाद शाहू ने राज्य-संचालन किया, किन्तु शाहू को औरंगज़ेब ने कैद में डाल रखा था। ऐसी स्थिति में इस वीर नारी ने मराठा शक्ति का संगठन किया और मुग़ल राज्य पर कई बार सफलता पूर्वक हमले कर छापे मारे। ताराबाई के इस कार्य में उसके विश्वस्त सेनापति शंकर नारायण का पूर्ण सहयोग मिलता रहा। 

जिस हिन्दू राज्य की नींव डालने का कार्य सन १६७४ में शिवाजी ने किया, उसे ताराबाई ने आगे बढ़ाने का प्रयास किया। सन १६८० में ससुर शिवाजी की और सन १७०० में पति राजाराम की मृत्यु के उपरान्त भी यह वीरांगना मुग़लों से सदा संघर्ष करती रही। औरंगज़ेब ने मराठों के कई दुर्गों पर अधिकार कर लिया था, उनमें से सिंहगढ़, पूना और पुरन्दर तीनों किलों पर ताराबाई ने पुनः अपना अधिकार स्थापित कर पूरे महाराष्ट्र में अपनी वीरता की धाक जमा दी थी। एक ओर जहां उसके विश्वासपात्र सहयोगियों और शुभाकांक्षियों को ताराबाई की सफलता पर हर्ष और गर्व था, वहीं शाहू और उसके द्वारा समर्थित लोग ताराबाई के विरुद्ध विभिन्न षड्यंत्र रचकर उसके कार्य में बाधक बन रहे थे। वीर ताराबाई ने सबका दृढ़ता और अदम्य साहस से मुकाबला किया और विश्वासघातियों व षड्यंत्रकारियों के सारे इरादों को विफल कर दिया। 

शाहू की मृत्र्यु के बाद तरबी का पौत्र रामराज गद्दी पर बैठा। एक समय बालाजी पेशवा पूना पर अधिकार कर पूरी राज्य सत्ता हड़पने को उत्सुक था। उसने रामराज को कैद कर दिया। एक समय ताराबाई की अवस्था ७० साल की थी पर साहस अब भी कम न था। उसने पेशवा को परास्त करके पूना पर आक्रमण किया, वह डर कर भाग गया और तरबी ने पूना पर आधिपत्य स्थापित किया व अपने पौत्र रामराज को कैद से छुड़वाया। जीवन भर संघर्ष करते हुए ताराबाई ने जिस रणकुशलता,कूटनीतिज्ञता व बुद्धिमता का परिचय दिया, वह अनुकरणीय है। 

डा.विक्रमसिंह राठौड़,गुन्दोज
राजस्थानी शोध संस्थान, चोपासनी, जोधपुर

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